अरविंद गिरी का जन्म उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम स्वर्गीय राजेंद्र गिरी था। उन्होंने अपने जीवन में राजनीति और खेल दोनों क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाई। खासतौर पर उन्हें फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में भी जाना जाता है। नगर के पब्लिक इंटर कॉलेज के मैदान से उन्होंने खेल की शुरुआत की और बाद में छात्र राजनीति से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया।
अरविंद गिरी जातिगत दृष्टि से ऐसे समुदाय से थे जिसका कोई सशक्त राजनीतिक जनाधार नहीं था। इसके बावजूद उन्होंने अपनी मेहनत और सामाजिक समरसता के सिद्धांत पर चलते हुए राजनीति में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की। वह पांच बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। उनकी पहचान सबको साथ लेकर चलने वाले जनप्रतिनिधि के रूप में बनी रही।
UPDATE : 6 सितंबर 2022 को एक सड़क यात्रा के दौरान हृदयगति रुकने से उनका निधन हो गया। वह अपने पीछे पत्नी सुधा गिरी, दो पुत्र और दो पुत्रियों सहित एक संपूर्ण परिवार छोड़ गए।
अरविंद गिरी का राजनीतिक सफर
छात्र राजनीति से ग्राम प्रधान बनने तक
अरविंद गिरी का राजनीतिक सफर 1981 में शुरू हुआ जब वह केन ग्रोवर्स नेहरू पीजी कॉलेज के छात्र संघ में मंत्री चुने गए। इसके बाद 1988 में वह ग्राम पंचायत लालहापुर के प्रधान बने। यह उनके राजनीति में सक्रिय योगदान की औपचारिक शुरुआत थी।
सपा से विधायक बनने की शुरुआत
1993-94 में अरविंद गिरी को श्रीनगर क्षेत्र के तत्कालीन विधायक कुंवर धीरेंद्र बहादुर सिंह ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता दिलाई और नगर अध्यक्ष बनाया। 1995 में उन्होंने गोला नगर पालिका परिषद अध्यक्ष का चुनाव रिकार्ड मतों से जीता। इसके अगले ही वर्ष, 1996 में वह पहली बार सपा के टिकट पर तेरहवीं विधानसभा में विधायक बने।
दूसरी और तीसरी बार विधायक
2000 में वह पुनः नगर पालिका परिषद गोला के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 2002 में उन्होंने सपा से चौदहवीं विधानसभा के लिए दूसरी बार विधायक पद प्राप्त किया। 2005 में उन्होंने सपा शासनकाल में अपनी अनु वधू अनीता गिरी को जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित कराया। 2007 में उनकी पत्नी सुधा गिरी गोला नगर पालिका अध्यक्ष बनीं। उसी वर्ष अरविंद गिरी ने तीसरी बार पंद्रहवीं विधानसभा में विधायक के रूप में स्थान पाया।
अरविंद गिरी : भाजपा में शामिल होकर पांचवीं बार विधायक
2022 के विधानसभा चुनाव में अरविंद गिरी ने समाजवादी पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा और अठारहवीं विधानसभा के लिए पांचवीं बार विधायक चुने गए। यह उनकी राजनीतिक यात्रा का अंतिम अध्याय साबित हुआ।
सामाजिक सहभागिता और योगदान
भाईचारे की राजनीति
अरविंद गिरी का राजनीतिक नारा “भाईचारा” 1995 में नगर पालिका परिषद के चुनाव के समय चर्चित हुआ था। यही नारा आगे चलकर उनकी पहचान बना। उन्होंने सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की नीति अपनाई और क्षेत्रीय राजनीति में स्थायी प्रभाव डाला।
परिवार की भागीदारी
उनका परिवार भी सक्रिय रूप से राजनीति में जुड़ा रहा। उनकी पत्नी सुधा गिरी, अनु वधू अनीता गिरी जैसे परिजनों ने विभिन्न स्थानीय निकायों में नेतृत्व किया, जिससे उनका राजनीतिक आधार और अधिक मजबूत हुआ।
अरविंद गिरी का जीवन परिचय और राजनीतिक सफर यह दर्शाता है कि उन्होंने grassroots स्तर से राजनीति की शुरुआत कर उत्तर प्रदेश विधानसभा में पांच बार विधायक बनने तक का सफर तय किया। छात्र राजनीति, ग्राम पंचायत, नगर पालिका और विधानसभा – सभी स्तरों पर उन्होंने जिम्मेदारियों को निभाया। जातीय जनाधार के अभाव के बावजूद उन्होंने अपने व्यवहार और भाईचारे की नीति से राजनीति में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त किया।
उनका निधन केवल गोला या खीरी ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति थी।
गोला गोकर्णनाथ विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के अमन गिरी जीत गए हैं। अमन गिरी ने अपने पिता अरविंद गिरी की विरासत को संभालते हुए सपा कैंडिडेट विनय तिवारी के खिलाफ बड़ी जीत दर्ज की है।
UP Election Results 2022: यूपी के वोटों के अंतर से जीत का Margin Meter
Lakhimpur Kheri Election Result 2022
लखीमपुर खीरी ज़िले की सभी विधानसभा सीटों (2022) के विजयी प्रत्याशी
क्रम संख्या | विधानसभा क्षेत्र | विजयी प्रत्याशी | पार्टी |
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1 | पलिया | हरविंदर कुमार साहनी (रोमी) | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) |
2 | निघासन | शशांक वर्मा | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) |
3 | गोला गोकर्णनाथ | अरविंद गिरी | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) |
4 | श्रीनगर | मंजू त्यागी | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) |
5 | धौरहरा | विनोद शंकर अवस्थी | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) |
6 | लखीमपुर | योगेश वर्मा | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) |
7 | कस्ता | सौरव सिंह सोनू | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) |
8 | मोहम्मदी | लोकेंद्र प्रताप सिंह | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) |