देवरिया जिले की सातों विधानसभा सीटों पर 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दबदबा देखने को मिला। देवरिया जिले की राजनीति में बरहज सीट से दीपक मिश्रा, भाटपार रानी से सभा कुंवर कुशवाह, देवरिया से शलभमणि त्रिपाठी, पत्थरदेवा से सूर्य प्रताप शाही, रामपुर कारखाना से सुरेंद्र चौरसिया, रुद्रपुर से जयप्रकाश निषाद, और सलेमपुर (जो एक सुरक्षित सीट है) से विजय लक्ष्मी गौतम ने भाजपा प्रत्याशियों के रूप में जीत हासिल की।

1 बरहज (Barhaj) : दीपक मिश्रा ( भाजपा )

दीपक कुमार मिश्रा उर्फ शाका देवरिया जिले के बरहज विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत ग्राम बकुची के निवासी हैं। उनके पिता स्व. पंडित दुर्गा प्रसाद मिश्र न केवल एक लोकप्रिय जनप्रतिनिधि थे, बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं।

पंडित दुर्गा प्रसाद मिश्र ने 1980 में सलेमपुर और 1991 में बरहज से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता था। वे पूर्वी उत्तर प्रदेश में भाजपा की नींव मजबूत करने वाले प्रमुख नेताओं में से एक माने जाते हैं।

बरहज विधानसभा सीट को लंबे समय तक समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है। लेकिन 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दीपक कुमार मिश्रा ने देवरिया जिले की राजनीति में इस परंपरा को तोड़ते हुए भाजपा के प्रत्याशी के रूप में समाजवादी गढ़ में विजय हासिल की

राजनीतिक विचारधारा : दीपक मिश्रा ने भारतीय जनता पार्टी से जुड़कर राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू की।

2 भाटपार रानी (Bhatpar Rani) : सभा कुंवर कुशवाह ( भाजपा )

वर्ष 2002 में सभाकुँवर कुशवाहा ने समता पार्टी के टिकट पर पहली बार भाटपाररानी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का दामन थामा और 2007 तथा 2012 में फिर से इसी सीट से चुनाव लड़ा, परंतु दोनों बार दूसरे स्थान पर ही रहे।

देवरिया जिले की राजनीति : असफलताओं के दौर

2013 में हुए उपचुनाव में जब कामेश्वर उपाध्याय के निधन के बाद टिकट की बारी आई तो बसपा ने उनका टिकट काट दिया। इसके बाद उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। 2014 में कांग्रेस के टिकट पर देवरिया लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, जहां उन्हें चौथे स्थान से ही संतोष करना पड़ा।

भाजपा से मिली नई ऊर्जा

लगातार असफलताओं के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 2017 में एक बार फिर बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सके। इसके बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर एक बड़ा राजनीतिक कदम उठाया।

2022 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें भाटपाररानी से उम्मीदवार बनाया। उन्होंने डॉ. आशुतोष उपाध्याय को हराकर पहली बार विधानसभा पहुंचे और यह उनके लगभग दो दशक लंबे संघर्ष का सुखद अंत साबित हुआ।

राजनीतिक विचारधारा : सभाकुँवर कुशवाहा का राजनीतिक सफर उत्तर प्रदेश की राजनीति में दल बदल की पराकाष्ठा और संघर्ष से सफलता तक की मिसाल है। उन्होंने समता पार्टी से राजनीति की शुरुआत की, फिर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का दामन थामा, निर्दलीय भी चुनाव लड़ा, इसके बाद कांग्रेस में भी अपनी किस्मत आजमाई, फिर बसपा में लौटे और अंत में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होकर 2022 के विधानसभा चुनाव में पहली बार जीत का स्वाद चखा। 2022 में विधायक बने ‘आया राम गया राम’

3 देवरिया (Deoria): शलभमणि त्रिपाठी ( भाजपा )

शलभमणि त्रिपाठी का राजनीतिक जीवन वर्ष 2016 में शुरू हुआ, जब उन्होंने पत्रकारिता की दुनिया को अलविदा कहकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्यता ली। पूर्व में न्यूज़18 इंडिया में वरिष्ठ पत्रकार रह चुके शलभमणि ने भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात के बाद अपनी पत्रकारिता से विदाई ली और राजनीति में सक्रिय हुए।

भाजपा में शामिल होते ही उन्हें उत्तर प्रदेश भाजपा का प्रदेश प्रवक्ता बनाया गया। उनके पास मीडिया संचालन और संवाद की गहरी समझ थी, जिसे पार्टी ने संगठनात्मक कामों में प्रभावी तरीके से उपयोग किया। वर्ष 2019 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना विभाग का सलाहकार नियुक्त किया।

उनकी राजनीतिक यात्रा में सबसे बड़ा मोड़ वर्ष 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आया, जब उन्होंने देवरिया सदर विधानसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अजय प्रताप सिंह उर्फ पिंटू को बड़े अंतर से हराया और पहली बार विधायक निर्वाचित हुए।

राजनीतिक विचारधारा : शलभमणि त्रिपाठी ने भारतीय जनता पार्टी से जुड़कर राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू की।

4 पत्थरदेवा (Pathardeva) सूर्य प्रताप शाही ( भाजपा )

सूर्य प्रताप शाही उत्तर प्रदेश की राजनीति के उन वरिष्ठ चेहरों में से एक हैं, जिनका राजनीतिक सफर दशकों से प्रदेश की सत्ता की धुरी रहा है। उनके राजनीतिक जीवन की प्रेरणा उनके चाचा रविंद्र किशोर शाही से मिली, जो भारतीय जनसंघ के प्रदेश अध्यक्ष और 1977 से 1979 तक उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे।

सूर्य प्रताप शाही ने 1980 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें पहली सफलता 1985 में कसया विधानसभा सीट से मिली। इसके बाद 1991 और 1996 में भी वे इसी सीट से विधायक चुने गए। अपने विधायकी कार्यकाल के दौरान वे गृह राज्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री, और आबकारी मंत्री जैसे कई अहम विभागों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं, जिससे उनकी प्रशासनिक पकड़ और नेतृत्व कौशल साबित हुआ।

2012 में विधानसभा सीटों के परिसीमन के बाद कसया सीट का नाम बदलकर पथरदेवा कर दिया गया, लेकिन इस बार शाही को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, 2017 में उन्होंने जोरदार वापसी करते हुए भाजपा के टिकट पर पथरदेवा से जीत दर्ज की और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में कृषि, कृषि शिक्षा और अनुसंधान मंत्री बनाए गए।

2022 के चुनाव में, उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी ब्रह्माशंकर त्रिपाठी को हराकर एक बार फिर विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, और योगी सरकार 2.0 में दोबारा कैबिनेट मंत्री बने।

राजनीतिक विचारधारा : सूर्य प्रताप शाही ने भारतीय जनता पार्टी से जुड़कर राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू की।

5 रामपुर कारखाना (Rampur Karkhana) सुरेंद्र चौरसिया ( भाजपा )

सुरेंद्र चौरसिया ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत हिंदू युवा वाहिनी (हियुवा) से की थी। संगठन में रहते हुए उन्होंने जनता की समस्याओं के लिए लगातार संघर्ष किया और युवाओं के बीच एक लोकप्रिय चेहरा बनते चले गए।

वर्ष 2010 में सुरेंद्र चौरसिया ने अपने सामाजिक और संगठनात्मक प्रभाव का उपयोग करते हुए अपनी पत्नी अनिता चौरसिया को रामपुर कारखाना वार्ड-12 से जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित करवाया। यह उनकी नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक दृष्टिकोण की शुरुआत थी।

इसके बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थाम लिया और वर्षों तक पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर कार्य करते हुए अपनी मजबूत पकड़ बनाई। उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में गांव-गांव जाकर जनसंपर्क किया और लोगों की समस्याओं को समझते हुए समाधान के प्रयास किए।

2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सिटिंग विधायक कमलेश शुक्ला का टिकट काटकर पिछड़ी जाति के युवा नेता सुरेंद्र चौरसिया को प्रत्याशी बनाया। यह पार्टी के लिए एक साहसिक निर्णय था, लेकिन सुरेंद्र चौरसिया ने पार्टी के भरोसे को पूरी तरह से सही साबित किया

उन्होंने कुल 90,742 वोट (43.85%) हासिल किए और तीन बार की विधायक रहीं समाजवादी पार्टी की गजाला लारी को 14,670 वोटों के अंतर से हराकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। गजाला लारी को कुल 76,072 वोट (36.76%) मिले।

राजनीतिक विचारधारा : सुरेंद्र चौरसिया ने भारतीय जनता पार्टी से जुड़कर राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू की।

6 रुद्रपुर (Rudrapur) जयप्रकाश निषाद ( भाजपा )

जयप्रकाश निषाद ने अपना राजनीतिक जीवन ग्राम प्रधान पद से आरंभ किया। ग्राम स्तर की सेवा से आगे बढ़ते हुए उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गतिविधियों से जुड़कर संगठनात्मक क्षेत्र में गहरी पैठ बनाई। वह तीन बार जिला संयोजक और दो बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) के जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं।

उनका राजनीतिक सफर वर्ष 1989 के राम मंदिर आंदोलन से नई दिशा में आगे बढ़ा, जब उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली और आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए बस्ती जेल में एक माह तक बंद भी रहे। यह दौर उनके संघर्ष और विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक रहा।

1991 में पहली बार विधायक के रूप में चुने गए, लेकिन 1993 में सपा-बसपा गठबंधन की लहर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने 1996 में पुनः जीत हासिल की, जिससे उनकी राजनीतिक जमीन और मजबूत हुई। इसके बाद, हालांकि, भाजपा को क्षेत्र में लगभग 15 वर्षों तक कठिन संघर्ष करना पड़ा।

जयप्रकाश निषाद ने इस लंबे दौर में भी कभी हार नहीं मानी और लगातार संगठनात्मक कार्य में लगे रहे। अंततः सातवें प्रयास में रुद्रपुर विधानसभा सीट से जीत दर्ज कर वे दोबारा विधायक बने और भाजपा की क्षेत्रीय मजबूती में एक अहम भूमिका निभाई।

उनकी यात्रा की विशेषता यह रही कि उन्होंने कभी भी पार्टी नहीं बदली और भाजपा के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने जिले की तीनों सीटों पर भाजपा को जीत दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाई, जिसके फलस्वरूप उन्हें प्रदेश मंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई।

राजनीतिक विचारधारा : जयप्रकाश निषाद ने भारतीय जनता पार्टी से जुड़कर राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू की।

7 सलेमपुर (Salempur) (सुरक्षित सीट) विजय लक्ष्मी गौतम ( भाजपा )

विजय लक्ष्मी गौतम ने वर्ष 1992 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। अपने लंबे राजनीतिक सफर में उन्होंने संगठन के विभिन्न पदों पर सेवा दी। भाजपा महिला मोर्चा की नगर अध्यक्ष, नगर उपाध्यक्ष, जिला मंत्री, गोरखपुर क्षेत्र की मंत्री और प्रदेश कार्यसमिति की सदस्य के रूप में उन्होंने लगातार संगठन को मजबूत किया।

2009 में परिसीमन के बाद जब सलेमपुर सुरक्षित सीट बनी, तो भाजपा ने 2012 में विजय लक्ष्मी गौतम को प्रत्याशी बनाया, लेकिन उन्हें समाजवादी पार्टी के मनबोध प्रसाद से हार का सामना करना पड़ा। 2017 में टिकट कटने के बाद उन्होंने सपा का दामन थामा, पर वहां भी चुनावी सफलता नहीं मिली।

इसके बावजूद विजय लक्ष्मी गौतम ने राजनीति से दूरी नहीं बनाई, बल्कि 2022 विधानसभा चुनाव से पहले फरवरी में भाजपा में वापसी की। पार्टी ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताते हुए सलेमपुर सीट से टिकट दिया।

इस बार विजय लक्ष्मी गौतम ने भाजपा की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए सुभासपा के प्रत्याशी मनबोध प्रसाद को 14,608 वोटों के अंतर से हराकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। उन्हें 80,047 मत प्राप्त हुए, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी को 65,439 मत मिले।

यह जीत सलेमपुर विधानसभा सीट पर भाजपा की लगातार दूसरी जीत थी। इससे पहले 1980 में भाजपा के दुर्गा प्रसाद मिश्र यहां से विधायक बने थे।

विजय लक्ष्मी गौतम ने भारतीय जनता पार्टी से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की, 2017 में टिकट कटने पर समाजवादी पार्टी का दामन थामा, लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव से पहले फरवरी में फिर भाजपा में वापसी कर ‘आया राम-गया राम’ की राजनीति की एक और मिसाल पेश की।

देवरिया जिले की राजनीति : आया राम गया राम’ का ट्रेंड?

देवरिया जिले की राजनीति में भाजपा ने सभी सातों विधानसभा सीटों पर विजय पताका फहराई। बरहज से दीपक मिश्रा, भाटपार रानी से सभा कुंवर कुशवाह, देवरिया से शलभमणि त्रिपाठी, पत्थरदेवा से सूर्य प्रताप शाही, रामपुर कारखाना से सुरेंद्र चौरसिया, रुद्रपुर से जयप्रकाश निषाद, और सलेमपुर (जो सुरक्षित सीट है) से विजय लक्ष्मी गौतम ने भाजपा प्रत्याशियों के रूप में जीत दर्ज की।

इनमें पत्थरदेवा से सूर्य प्रताप शाही और सलेमपुर से विजय लक्ष्मी गौतम ने अपने पूर्व दलों से नाता तोड़कर वापसी की, जिससे ये दोनों नेता ‘आया राम-गया राम’ की राजनीति की मिसाल बन गए।





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