उत्तर प्रदेश की राजनीति में सामाजिक न्याय, पिछड़े वर्गों की आवाज और ग्रामीण संघर्षों की पहचान बने ओमप्रकाश राजभर आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। ओपी राजभर का जीवन परिचय और राजनीतिक सफर न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि यह इस बात का जीवंत प्रमाण भी है कि एक सामान्य परिवार से आने वाला व्यक्ति भी संकल्प, संघर्ष और समाजसेवा के माध्यम से राजनीति के शीर्ष पर पहुंच सकता है।
ओमप्रकाश राजभर : साधारण परिवार से असाधारण नेता बनने का सफर
ओमप्रकाश राजभर का जन्म 15 सितंबर 1962 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के फतेहपुर खौदा (सिंधोरा) गांव में हुआ। उनके पिता सन्नू राजभर एक कोयला खदान में मजदूरी करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में पले-बढ़े ओपी राजभर ने किशोरावस्था से ही खेती-किसानी में हाथ बंटाना शुरू किया और पढ़ाई के दौरान टेम्पो चलाकर अपने खर्च निकालते थे। यह तथ्य ओपी राजभर के जीवन परिचय को संघर्ष और आत्मनिर्भरता का उदाहरण बनाता है।

उन्होंने बलदेव डिग्री कॉलेज, बनारस से 1983 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और यहीं से राजनीति शास्त्र में परास्नातक की डिग्री भी हासिल की। उनकी पत्नी राजमति और दो बेटे – अरुण राजभर और अरविंद राजभर – उनके पारिवारिक और राजनीतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। अरुण राजभर उनकी पार्टी सुभासपा के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में सक्रिय हैं।
ओमप्रकाश राजभर : कांशीराम से प्रेरणा और बसपा में सक्रिय राजनीति की शुरुआत
ओपी राजभर का राजनीतिक सफर 1981 में उस वक्त शुरू हुआ जब वे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम से प्रभावित होकर सक्रिय राजनीति में आए। उन्होंने एक जमीनी कार्यकर्ता के रूप में क्षेत्र में काम किया और जल्द ही उनकी मेहनत रंग लाई। 1996 में उन्हें बसपा का गाजीपुर जिलाध्यक्ष बनाया गया।
यह राजनीतिक सफर एक नई दिशा तब लेता है जब 2002 में मायावती सरकार द्वारा भदोही का नाम बदलकर संतकबीर नगर किए जाने पर ओपी राजभर ने असहमति जताई और पार्टी से बगावत कर दी। 27 अक्टूबर 2002 को उन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) की नींव रखी।
चुनावी राजनीति में आत्मनिर्भरता का संघर्ष
सुभासपा की स्थापना के बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में ओपी राजभर ने उत्तर प्रदेश और बिहार में अपने प्रत्याशी उतारे, लेकिन कोई भी सीट नहीं जीत सके। यह राजनीतिक जीवन परिचय का कठिन दौर था, लेकिन राजभर ने हार नहीं मानी। उन्होंने सामाजिक जनाधार बढ़ाने और पिछड़ी जातियों को संगठित करने का काम जारी रखा।
ओमप्रकाश राजभर : भाजपा गठबंधन से नई ऊंचाइयों तक
राजनीतिक पहचान को मजबूती तब मिली जब 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर ने भाजपा से गठबंधन किया। भाजपा ने उन्हें आठ सीटें दीं, जिनमें से चार पर जीत दर्ज की गई। ओपी राजभर खुद जहूराबाद विधानसभा सीट से विधायक बने और योगी आदित्यनाथ सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण व दिव्यांगजन कल्याण मंत्री बनाए गए।
यह दौर ओपी राजभर के राजनीतिक जीवन परिचय का स्वर्णिम अध्याय रहा, लेकिन विचारधारात्मक मतभेदों और गठबंधन धर्म का पालन न करने के आरोपों के चलते 2019 में भाजपा ने उनसे नाता तोड़ लिया।
सपा के साथ गठबंधन और पुनः वापसी
2022 के विधानसभा चुनाव में ओपी राजभर ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से गठबंधन किया और सुभासपा ने 16 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से छह पर जीत मिली। खुद ओपी राजभर फिर से विधायक चुने गए। यह ओपी राजभर के राजनीतिक सफर में एक बार फिर से मजबूत वापसी थी।
संघर्ष, विचार और नेतृत्व का प्रतीक
ओपी राजभर का जीवन परिचय और राजनीतिक सफर उस संघर्षशील नेता की कहानी है जिसने समाज के सबसे कमजोर तबकों के अधिकारों की लड़ाई को अपना मिशन बनाया। टेम्पो चलाने से लेकर विधानसभा में मंत्री बनने तक, उन्होंने हमेशा पिछड़े वर्गों और वंचितों की आवाज उठाई।
आज वे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में सामाजिक न्याय की लड़ाई को नई दिशा दे रहे हैं। उनके बेटे अरुण राजभर भी अब उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, जिससे साफ होता है कि यह सफर अभी समाप्त नहीं हुआ है—बल्कि अब नई पीढ़ी से आगे बढ़ने की तैयारी में है।
UP Election Results 2022: यूपी के वोटों के अंतर से जीत का Margin Meter
गाज़ीपुर ज़िले की विधानसभा सीटों का चुनाव परिणाम (2022) Ghazipur Assembly Election Results 2022
सीट का नाम | विजेता (पार्टी) | कुल वोट |
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जहूराबाद | ओमप्रकाश राजभर (सुभासपा) | 1,14,151 |
जखनियां | बेदी राम (सुभासपा-सपा गठबंधन) | 1,13,378 |
मुहम्मदाबाद | सुहैब अंसारी (सपा) | 1,10,683 |
जंगीपुर | वीरेंद्र यादव (सपा) | 1,02,091 |
सैदपुर | अंकित भारती (सपा) | 1,08,523 |
जमानियां | ओमप्रकाश सिंह (सपा) | 93,926 |
गाज़ीपुर सदर | जयकिशन साहू (सपा) | 92,472 |