चढ़ा सियासी पारा ।
बुआ और अजित ।।
शांतचित बबुआ ।
असमंजस घटित ।।
गठबंधन पर ग्रहण ।
टिकी हैं निगाहें ।।
थम गयी एकता ।
क्यों अलग राहें ?
कौन है विभीषण ?
ढाह रहा लंका ।।
कांग्रेस है करे ।।
दिल्ली पर शंका ।।
कृष्णेन्द्र राय
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