सियासी मजबूरी ।
लूँगा अब नाम ।।
खिसका जनाधार ।
बोलो जयश्रीराम ।।
बदली है रंगत ।
कायापलट जारी ।।
असमंजस स्थिति ।
करूँ मैं सवारी ?
गरम है मुद्दा ।
टपक रहा लार ।।
गर्त में हैं हम ।
कुंद पड़ी धार ।।
कृष्णेन्द्र राय
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