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मेरठ: टूटी दीवारें, टपकती छत- ऐसे में कैसे पढ़ें, कैसे बढ़ें?

An elementary school is being open with children's future.

मेरठ के एक प्राथमिक विद्यालय में बच्चों के भविष्य के साथ खुला खिलवाड़ किया जा रहा है. स्कूल की बिल्डिंग इतनी बुरी हालत में है कि उसमें घुसने में भी डर लगे. छात्रों की मूलभूत जरूरतों के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं है.

थाना टीपी नगर स्थित चंद्रलोक में साबुन गोदाम के पास प्राथमिक विद्यालय में बच्चे स्कूल के बाहर बैठने को मजबूर हैं. स्कूल में ना ही बिजली आती है और न ही बैठने तक का कोई इंतजाम है. स्कूल के बाहर मोहल्ले की गली में चटाई बिछाकर बैठने को छात्र मजबूर हैं. टीचर्स वहीँ बच्चों की क्लासेज लेती हैं.

3 माह से नहीं आ रही बिजली: 

प्राथमिक स्कूल में 3 माह से बिजली का कनेक्शन भी कटा हुआ है. एक तरफ जहाँ सरकार बच्चो के उज्जवल भविष्य के लिए आये दिन कोई न कोई नई घोषणा करती है वहीँ दूसरी तरफ इस तरह की ख़बरों का आना बहुत ही विचारणीय है.

यदि सरकार द्वारा बच्चों के लिए नयी सुविधाएँ लायी जा रहीं हैं तो जमीनी स्तर पर उन तक ये सुविधाएँ क्यों नहीं पहुंच पा रहीं है. सरकारी स्कूलों की व्यवस्था हमेशा ही सवालों के घेरे में रहती है और शायद ही कभी ऐसी खबर आये कि गाँव के बच्चे जो पहले ही इतना संघर्ष कर रहे है, उन तक मूलबूत सुविधाएँ पहुँच पाई हों.

स्कूल में बैठने की बात तो छोड़ ही दीजिये बच्चो के लोए उचित टॉयलेट्स तक की इंतजाम नहीं किया गया है. ऐसे में छात्राओं की सुरक्षा और निजता भी जरूरी हो जाती है.

बारिश होते ही स्कूल की छत टपकने लग जाती है और परिसर में जलभराव की समस्या हो जाती है. ऐसे में बच्चे पढ़ें भी तो कैसे?

स्कूल के बच्चों के लिए न ही पढने के सही हालात हैं और न ही मौलिक सुविधाएँ. इस प्रथिमिक स्कूल की छतें और दीवारें जर्जर है. और मुख्य दीवार भी टूटी हुई है.

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