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अफवाह: चोटी कटने पर मिल रहे 1 लाख रूपये!

braids chopping

देशभर में महिलाओं की चोटियां कट रही हैं. हैरानी की बात ये है कि देश की राजधानी दिल्ली से लेकर कई राज्यों में महिलाओं की चोटियां लगातार कट रही हैं. तरह-तरह की अफवाह भी है. अफवाहें चोटी कटने से भी तेजी से फैल रही हैं.

ये अफवाहें उसी तरह की हैं, जैसे 21 सितम्बर 1995 को पूरे देश में ये अफवाह फैल गई कि गणेश जी दूध पी रहे हैं. मतलब किसी भी मूर्ति को दूध पिलाइए, वो सीधे गणेश जी पी रहे हैं. ये अफवाह ऐसी फैली कि लोगों ने अपने घर में गणेश मूर्ति के सामने भी दूध से भरा चम्मच लगा दिया. लाखों लीटर दूध पत्थर की मूर्तियों के जरिए बहा दिया गया.

‘मंकीमैन का आतंक’ जैसी अफवाह

‘महिला शरीर जैसा जानवर’ जैसी अफवाह

भारतीय समाज को अफवाहों पर जीने की कितनी आदत है.

इसका अंदाजा उस समय भी लगा, जब 2014 में राजस्थान की राजधानी जयपुर के सरकारी चिड़ियाघर, पशुघर में एक ऐसे जानवर के होने की अफवाह फैल गई, जिसका शरीर महिला का है और मुंह जंगली सुअर जैसा. सोचिए कि वो सरकारी चिड़ियाघर था और वहां के प्रशासन के बार-बार सफाई देने के बावजूद चिड़ियाघर के बाहर उस विचित्र जन्तु को देखने को कतार लगी रही.

हिंदुस्तान में अफवाहें सुपरसोनिक रफ्तार से चलती हैं. इसका प्रमाण अभीचोटीकटवा मामले में मिला. उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की कुंडा तहसील में लरु पाल के पुरवा गांव में एक लड़की की चोटी कट गई. अच्छा ये रहा कि पुलिस ने मामले में सख्ती से पूछताछ की. सख्ती हुई, तो पता चला कि घरवालों ने ही लड़की के बाल काट दिए थे. बाल इसलिए काट दिए कि पंजाब से किसी रिश्तेदार ने फोन करके बताया कि चोटी कटने पर सरकार लड़कियों के घरवालों को 1 लाख रुपये दे रही है.

पुलिस ने घरवालों पर साजिश रचने का मामला दर्ज किया है. लेकिन, पंजाब के रिश्तेदार को तो पुलिस कहां पकड़ेगी. लंबे समय से हर नुकसान पर सरकारी कृपा मिलने की आस में रहा भारतीय समाज ऐसी अफवाहों के बीच में थोड़ा नुकसान करके आर्थिक लाभ लेने की कोशिश में लग जाता है. साथ ही सामाजिक सहानुभूति अलग से मिलती है.

आखिर महिलाओं की उतनी ही चोटी क्यों कट रही?

सवाल कई लेकिन घेरे में समाज:

आगरा में चोटीकटवा होने के संदेह में महिला की हत्या

अभी समाज में कोई ऐसा चोटीधारी नहीं है, जो खड़ा होकर कहे कि चोटीकटवा अफवाह है और उसे देश के लोग मान लें. ये महिलाओं की चोटी कटने की अफवाह नहीं है. ये हमारे समाज की तर्कशक्ति, वाद-विवाद की क्षमता, ज्ञान का आलोक कम होने का प्रमाण है.

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