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पूरा देश मना रहा डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर 127वीं जयंती

Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar

Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar

पूरे देश में भारत के संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर की याद में देश उनकी 127वीं जयंती मनाई जा रही है। राजधानी लखनऊ में रामाबाई अंबेडकर मैदान में एक विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रदेश भर में कार्यकर्ता बाबा साहब को याद कर उनकी प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर रहे हैं।

डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल सन 1891 में मध्यप्रदेश के महू में हुआ था। बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर का जीवन संघर्ष और सफलता की ऐसी अद्भुत मिसाल है जो शायद ही कहीं और देखने को मिले। भारत को आजादी मिलने के साथ आज तक के सफर को देखें तो एक बात साफ है कि आर्थिक मोर्चे पर देश नए मुकाम पर है।

उनके विचार उनके मौजूद रहने से ज्यादा उनके न रहने पर प्रासंगिक नजर आते हैं। समाज सुधारक, संविधानविद बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर उनमें से एक हैं। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को एक खास तारीख से बांध कर नहीं रखा जा सकता है।

लेकिन इन सबके बीच कभी न कभी कहीं न कहीं कुछ ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जो सोचने को मजबूर करती हैं कि हम मानसिक तौर आधुनिक हो नहीं पाए हैं। बाबा साहेब कहा करते थे कि सामाजिक समरसता के लिए वंचित तबकों को कुछ खास रियायतें देनी होंगी। ये बात अलग है कि उन वंचित वर्गों में भी सामंती प्रवृत्ति देखने को मिल रही है।

ये थे बाबा साहब के विचार

➡मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है।
➡इतिहास बताता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है, वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है।
➡निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है, जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल न लगाया गया हो।
➡बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
➡समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।
➡यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा।
➡जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते,कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिये बेमानी है।
➡समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।
➡जीवन लम्बा होने के बजाय महान होना चाहिए।
➡यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
➡हिन्दू धर्म में विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।

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