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बचपन पर लगी बालश्रम की बेड़ियां

बचपन पर लगी बालश्रम की बेड़ियां

बचपन पर लगी बालश्रम की बेड़ियां

इंसान का सबसे हसीन लमहों में से एक बचपन होता है। इस उम्र में ना ही किसी बात की चिन्ता रहती है और ना ही किसी भी जिम्मेदारी का एहसास। हर समय पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने एवं मौज मस्ती में लगा रहता है। परन्तु कुछ बच्चों के नसीब गरीबी व परिवार की तंगी हालत के कारण मजदूरी करने पर विवष कर देते हैं, तो बहुत सारे बच्चों को जबरदस्ती बाल श्रमिकों के रूप में उनका बचपन झोंक दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ भी इससे अछूता नहीं है। चाय की दुकान, नास्ते की दुकान, पंचर की दुकान हो फिर होटल कहीं पर भी आपको बाल श्रमिक देखने को मिल जाएंगे। भारत सरकार द्वारा बालश्रम के विभिन्न कानून बनाए जाने के बावजूद भी बच्चों का शोषण हो रहा है। ऐसे बच्चे सड़कों के किनारे लगे ठेले पर बर्तन माजने से लेकर होटलों एवं औद्योगिक क्षेत्रों में झाडू-पोछा करते नजर आते हैं। 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को जीविका के लिए कार्य करना बाल मजदूरी कहलाता है। भारत में यह एक जटिल समस्या के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। प्रदेश में कई स्थान तो ऐसे हैं जहाँ गरीब परिवार के लोग अपना पेट पालने के लिए अपने बच्चे को मजदूरी के लिए किसी चाय की दुकान अथवा नास्ते की दुकान पर रख देते हैं। बच्चों के भरोसे ही कई परिवार अपनी जीविका चलाते हैं।

शासन-प्रशासन की शिथिलता के कारण बाल मजदूरी को बढ़ावा मिल रहा है। वहीं कई परिवार तो ऐसे हैं जो स्वयं मजदूरी कर अपना पेट पालने में समर्थ होते हैं परन्तु वह इस कार्य के लिए अपने बच्चों को प्रताड़ित अथवा गुमराह कर भिक्षावृति की प्रवृति में धकेल देते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण आपको पालिटेक्निक चौराहे पर मिल जाएगा। जैसे ही कोई व्यक्ति सवारी गाड़ी से उतरकर किराया देने के लिए पर्स में हाथ डालता है वैसे ही तीन-चार बच्चे आकर उस व्यक्ति को घेर लेते हैं। चारों तरफ से घेरने के बाद बच्चे पैसे मांगने लगते हैं। ये बच्चे तब तक आपका पीछा नहीं छोड़ते जब तक की आप उन्हें पैसे ना दे दें। तीन से आठ साल के उम्र के बच्चों को ठीक से पैसों का ज्ञान भी नहीं होता है तब ये बच्चे यात्रियों से पैसे मांगते है। कुछ दयालु यात्री तो बच्चों को भोजन भी करा देते है।

देखने वाली स्थिति तो तब बनती है जब ये बच्चे किसी लड़की के पास जाकर पैसे मांगने लगते है। बच्चे उस लड़की का एक पैर कुछ इस तरह से जकड़कर बैठ जाते है जिस प्रकार एक अजगर अपने भोजन को जकड़ लेता है। उसकी पकड़ से मुक्त होना एक नामुमकिन सा काम हो जाता है। आलम यह है कि यदि कोई उन बच्चों पर हाथ उठाकर डराधमकर कर पैर छुड़ाने की कोशिश भी करे तो वह छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते हैं। पैसा लेने के बाद ही बच्चे उनके पैर छोड़ते हैं। यात्री ऐसी स्थिति में उन बच्चों से बच निकलने की जुगत में लगे रहते हैं।

कुछ इस प्रकार ही बालश्रम की धज्जिया उड़ाई जाती हैं। कुछ परिस्थितियों में बच्चे मजदूरी करने को विवश है तो कुछ बच्चों को विवश किया जा रहा है। कम आयु के बच्चों को काम करते देखकर ऐसा प्रतित हो रहा है कि भारत देश का बचपन ही जब बालश्रम की चपेट में है तो इनका भविष्य कैसा होगा। यहाँ तक कि सामजसेवी संगठन, जनप्रतिनिधि से लेकर प्रबुद्ध वर्ग के लोगों ने कभी-कभी ही आवाज उठाते हैं। समय के साथ-साथ वह कहीं खोता जाता है एवं बालश्रम की धज्जियाँ उड़ाने का सिलसिला लगातार जारी है।

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