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हमारी जांबाज सेना द्वारा बेतवा से नर्मदा आयोजित चिंडित अभियान का वीडियो

army concludes 500 kilometers betwa to narmada chindits trail expedition at dongar gaon

army concludes 500 kilometers betwa to narmada chindits trail expedition at dongar gaon

सेना ने 500 किमी लंबे चिंडित अभियान का समापन नर्सिंगपुर के नजदीक नर्मदा नदी के किनारे किया। इस अभियान दल ने अपना सफर विंध्य पर्वतश्रेणी के पश्चिम में बेतवा नदी और पूर्व में केन नदी से होते हुए दक्षिण में नर्मदा नदी के किनारे इस अभियान को समापन किया।

इस अभियान का शुभारंभ दक्षिणी कमान के जनरल अफसर कमांडिंग-इन-चीफ ले. जनरल डीआर सोनी द्वारा गत् 16 फरवरी 2018 को सुदर्शन चक्र कोर के जनरल अफसर कमांडिंग ले. जनरल आईएस घुम्मन की उपस्थिति में बबीना से किया गया था। इस अभियान को चार चरणों में पूरा किया गया। प्रत्येक चरण में दो युवा अधिकारी के नेतृत्व में दो जूनियर कमीशन्ड अधिकारी तथा 20 अन्य रैंकों के सैन्यकर्मियों ने लगभग 125 किमी की दूरी 5 दिनों में हर एक चरण में तय की। चिंडित द्वारा द्वितीय विश्व युुद्ध के दौरान बर्मा में किये जानेवाले आॅपरेशन की तैयारी के लिए मध्य भारत में लिए गये प्रशिक्षण को 75 वर्श पूर्ण होने की याद में चिंडित अभियान आयोजित किया गया।

अभियान 17 फरवरी को देवगढ़ में बेतवा नदी के किनारे पर ऐतिहासिक चंदेरी किले के नजदीक आंरभ हुआ। मालथोन के घने जंगलो से होते हुए बेतवा नदी की उप नदी धासन नदी को पार किया। उसके बाद पूर्व में केन नदी की ओर अग्रसर होते हुए विंध्य पर्वत माला के उत्तरी छोर से आगे बढ़ा। दिन के समय ज्यादा गर्मी होने के कारण कुछ दूरी को रात के समय तय किया गया जो चिंडित के आड़ लेकर घुसपैठ के आॅपरेशन करने जैसा था।

यमुना नदी की उप नदी, केन नदी के किनारे खड़ी ढलानों पर पन्ना बांध संरक्षित क्षेत्रों में चलने में अभियान दल के साहस और संकल्प के साथ-साथ उनके दमखम तीव्रता का परीक्षण हुआ। नर्मदा नदी के साथ विंध्य पर्वत माला के दक्षिण छोर की तरफ चलते हुए अभियान दल सिंगोरगढ़ किले के नजदीक सिंग्रामपुर पहुंचा जो सन 1564 में रानी दुर्गावती द्वारा वीरता पूर्वक लड़ाई के लिये प्रसिद्ध है। प्रेरणा लेकर अभियान का अंतिम चरण रानी दुर्गावती एवं नौरादेही वाइल्ड लाइफ अभ्यारण्य विंध्य पर्वत की सबसे ऊंची जगह 752 मीटर की ऊंचाई से गुजरते हुए यह पड़ाव नर्मदा नदी के किनारे संपन्न हुआ।

यह अभियान 21 दिनों के दौरान उत्तर प्रदेश के ललितपुर एवं मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दमोह तथा जबलपुर से होकर गुजरा। इस अभियान दल के सदस्य 5 दिनों के प्रत्येक चरण के लिए 25 से 30 किलोग्राम का भार लेकर चले और स्थानीय संसाधनों का प्रयोग करके जीवित रहने का अनुभव प्राप्त की।

अभियान मार्गाे में नेटवर्क न होने की दशा में यह अभियान दल बिना जीपीएस के प्रयोग किये केवल कम्पास एवं मैप के सहारे आगे बढ़ा और चिंडित के जोश को कायम रखते हुए दल स्वयं प्रतिकूल परिस्थितियों का मुकाबला किया। इस अभियान ने राष्ट्रीय एकता का संदेश देते हुए सुदूर इलाकों में आठ मेडिकल कैम्प लगाये। इस कैम्प के दौरान 1020 स्थानीय लोगों को जिनमें 470 महिलाएं शामिल थीं, चिकित्सा सुविधाएं दी गई। इस दौरान बबीना से परिवारों से प्राप्त स्वच्छ कपड़ों को जरूरतमंद लोगों को वितरित किया गया।

इस अभियान के आयोजन का उद्देश्य चिंडित के प्रशिक्षण अनुभव के साथ-साथ उनके अदम्य साहस के प्रति वर्तमान सैन्य पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी बनाना था। देश के विभिन्न हिस्सों से आये सेना की विभिन्न पलटनों के सैनिकों के बीच यह अभियान एक प्रेरणादायी भावना के साथ चिंडित के आदर्श वाक्य – “द बोल्डेस्ट मेजर्स आर द सेफेस्ट” को संजाये हुए था।

चिंडित फोर्स की स्थापना 1942 में जनरल चार्ल्स औरडे विंगेट न की थी। वर्तमान में भारतीय सेना की 4 गोरखा राइफल्स पलटने चिंडित फोर्स की हिस्सा थी। इनकी वर्दी में चिंडित का प्रतीक चिन्ह है – शेर की मुंह के भांति ड्रेगन बना हुआ है जो बौद्ध पौराणिक कथाओं के अनुसार पैगोडा का संरक्षक है।

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