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यूपी के विकास की राह में 5 बड़े रोड़े, क्या योगी कर पाएंगे इन्हें दूर?

5 major challenges

 

उत्तर प्रदेश चुनावों में भारी जीत के बाद योगी आदित्यनाथ ने सूबे की कमान संभाली. यूपी के नए सीएम ने राज्य को विकास के मार्ग पर लाने की बात की. उन्होंने कानून-व्यवस्था को ठीक करने से लेकर लेकर रोजगार देने की बात की. किसानों और गरीबों के लिए काम करने की बात की. आदित्यनाथ ने अधिकारियों के साथ बैठक में बीजेपी के मेनिफेस्टो को अमल में लाने की बात भी की. लेकिन चुनाव में किये गए वादे के बाद अब जमीनी स्तर पर इसे हकीकत का रूप देने में योगी आदित्यनाथ के सामने कई चुनौतियाँ हैं. योगी आदित्यनाथ को इन चुनौतियों से निपटने का रास्ता ढूंढना होगा.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी को अप्रत्याशित बहुमत मिला और योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी इस राज्य ने 80 में से 73 सीटों पर जीत दी थी. 403 सदस्यों की विधानसभा में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को मिलाकर 325 सदस्य हैं. उत्तर प्रदेश की जनता ने पीएम मोदी पर विश्वास जताते हुए इतना बड़ा बहुमत दिया लेकिन अब पार्टी और पीएम मोदी पर उन तमाम वादों को पूरा करने का दबाव है और पदभार सँभालने के शुरुआती दिनों में इसी दिशा में योगी आदित्यनाथ प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं.

योगी के सामने 5 बड़ी चुनौतियाँ:

जीडीपी में पीछे:

उत्तर प्रदेश की आबादी देश की कुल आबादी के लगभग 17 फीसदी है और जीडीपी में योगदान 8 फीसदी (12 लाख करोड़ रुपये) के करीब है. 2004-05 से 2014-15 के दौरान उत्तर प्रदेश महज 6 फीसदी के विकास दर ही अर्जित कर पाया है. ऐसे में जीडीपी में सुधार के लिये योगी आदित्यनाथ को नीतियों में फेरबदल और कई योजनाओं को जमीन पर बेहतर रूप से लागू करने की दिशा में काम करना होगा।

बेरोजगारी और प्रति व्यक्ति आय:

उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय 49,450 रुपये है जो कि अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है. बेरोजगारी का राष्ट्रीय औसत 5 फीसदी है वहीँ बेरोजगारी के मामले में यूपी ने 2016 में 7.4 फीसदी के आंकड़े को पार कर लिया. रोजगार देने के मामले में उत्तर प्रदेश देश गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा से पीछे है. यूपी में युवाओं का एक बड़ा वर्ग बेरोजगार है.

अशिक्षा:

उत्तर प्रदेश में साक्षरता आंकड़े बहुत खराब हैं. 2011 के आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में महज 68 फीसदी लोग साक्षर हैं वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 74 फीसदी है. इसके पीछे सबसे बड़ी चुनौती राज्य में स्कूलों की ख़राब स्थिति है. जहां सीबीएसई द्वारा प्रति टीचर 10-30 छात्र का प्रावधान है प्रदेश में प्रति टीचर औसत 70 छात्रों का है. प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक, सबकुछ बेहाल है. शिक्षा क्षेत्र में उचित सुविधाएँ न होना और नकल माफियाओं द्वारा परीक्षाओं पर अपनी पकड़ बनाना आम बात हो चुकी है.

दम तोड़ती चिकित्सा सुविधाएँ:

उत्तर प्रदेश की हालत यहाँ भी बेहद खराब है. हेल्थ केयर सेंटर के मापदंड़ों पर उत्तर प्रदेश के कई जिले बहुत नीचे हैं जिनमें 47 शामिल हैं. मृत्यु दर 50 मृत्यु प्रति 1000 जन्मपर है जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 40 मृत्यु प्रति हजार जन्म है. अस्पतालों की माली हालत देखकर यहाँ सुविधाओं के अभाव को समझा जा सकता है. करीब 50 फीसदी जन्म अस्पताल या हेल्थ केयर सेंटर में होता है वही पूरे देश में यह आंकड़ा 75 फीसदी के करीब है. हॉस्पिटल में योग्य डॉक्टरों की कमी और उच्चतकनीक से लैस यंत्रों के अभाव ने भी जनता की कमर तोड़ने का काम किया है.

उद्योगों का अभाव:

इस मामले में भी यूपी पिछड़ा हुआ है और यहाँ के युवाओं को दूसरे राज्यों में जाकर नौकरी करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इस समस्या के कारण पलायन भी बढ़ा है. केमिकल्स, पेट्रोकेमिकल, डेयरी, ड्रग्स और फार्मा, सीमेंट और सिरेमिक्स, जेम्स एंड ज्वैलरी, टेक्सटाइल और इंजीनियरिंग के मामले में यूपी को अभी लम्बा रास्ता तय करना होगा. यहाँ की अर्थव्यवस्था अभी भी कृषि पर आधारित है लेकिन पिछले कुछ सालों में सूखे ने कृषि को भी प्रभावित किया है. बाढ़ जैसे त्रासदी से भी राज्य का बड़ा इलाका जूझता रहा है.

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