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जिंदा दीवार में दफन हो गए लेकिन झुके नहीं- आलोक पांडेय

IAS Alok Pandey Wrote a Story on Christmas Day

IAS Alok Pandey Wrote a Story on Christmas Day

सन 1699 और सन 1704, सथान आनंदपुर, अजीत सिंह जुझारू सिंह फतेह सिंह जोरावर सिंह गुरू गोविन्द सिंह जी के चार पुत्र दो तो क्रमशः 7 और 9 साल के मात्र। औरंगजेब सेना ने आक्रमण किया और पराजित हो कर पुनः आक्रमण किया कई दिनो के पश्चात भी सफलता न मिलने पर कुरान की शपथ लेकर गुरू जी को सुरक्षित निकलने के लिए समझौता किया गया। 20 दिसंबर 1704 जब गुरूजी अपनी मां, चार पुत्रों और पंज पयारो के साथ निकले और सिरसा तट पर पहुंचे, कुरान की खायी शपथ तोड़ कर मुगल सेना ने आक्रमण किया, पंज प्यारे लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

पवित्र आदि ग्रंथ की मूल प्रति नदी मे गिर गयी। फतेह सिंह और जोरावर सिंह 7,9 साल के बच्चे और गुरू जी की माँ जगल मे भटक गये और 40 सिख वीर और दो बड़े पुत्रो के साथ गुरूजी चमकौर के मिट्टी के बने किले मे पहुँचे। 40 सिख वीरो ने हजारो की फौज से जिस अदम्य अदभुत वीरता के साथ लोहा लिया था वह इतिहास में भले आज हमारी नपुसंकता के चलते दबा दिया गया हो किंतु इस युद्ध की यशोगाथा युगों-युगों तक अमर रहेगी। गुरूजी के दोनों बड़े पुत्र बलिदान हुए। इस युद्ध मे सिक्खों ने मकर व्यूह रचना जिसमे 6, 6 के सिपाही क्रमशः एक दूसरे के पीछे एक दूसरे को बांध कर और इस प्रकार चार हाथो और चार शस्त्रों से सुसज्जित होकर युद्ध करने उतरे।

उधर जोरावर सिंह और फतेह सिंह माता गुजरी के साथ सरहिद के नवाब वजीर खान के हाथ लगे और सरहिद के किले मे इसी ठंड मे खुले बुर्ज पर बिना किसी कपड़े के कैद किये गये जरा सोचिये इस ठंड में बिना कपड़ों के खुले बुर्ज मे !!! वज़ीर खान ने कहा इसलाम कूबूल कर लो और सारे दुखो का अंत!! सात साल के बचचे का जवाब था ” वाहे गुरूजी की फतह वाहे गुरूजी का खालसा ” जरा सोचिये आज के किसी भी बचचे को एक चाकलेट देकर हम कुछ भी करा सकते है कुछ भी कहला सकते है लेकिन भारतीय संसकृति के उस आदर्श और द्रढ़ता को जो उन दो बचचो ने दिखायी होगी। नमन !!

खैर दोनों बच्चों को उनकी दादी के सामने दीवार मे जीवित ही चुनवा दिया गया और हर नयी ईंट पर उनके मुख से एक ही शब्द निकला जय खालसा। आज 314 वर्ष पश्चात हमारा युवा वर्ग इन्हें भूल चुका है और उसे याद रह गयी 20 से 27 दिसंबर के बीच केवल 25 दिसंबर। हमे क्रिसमस भी मनानी है लेकिन साथ ही इस बलिदान का गौरव भी। शायद ही किसी स्कूल, शापिंग माल, होटल मे हमे सांटा क्लाज के साथ इन चार साहस की मूर्तियों को भी देखा हो। “जय हिंद”

आलोक पांडेय जिलाधिकारी (सहारनपुर)

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