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हमारी मासूमियत ही हमारा काल बन गई!

किसी अख़बार की सुर्ख़ियां नहीं हैं हम…ना ही न्यूज़ चैनल्स की हेडलाइन्स…हम तो क़ायनात के
सबसे छोटे नुमाइंदे हैं…हमें तो ये भी पता नहीं कि अमीरी और ग़रीबी का फ़र्क क्या होता है ? दूसरे
बच्चों की तरह हमारे मां-बाप भी हमें बहुत प्यार करते थे. हमें स्कूल भेजते थे. हमारी हर ज़िद पूरी
करते थे. हमें लेकर सपने देखते थे. लेकिन उनके सपनों को पता नहीं किसकी नज़र लग गई…शायद

गरीबी बनी काल: 

बिगड़ती रही हालत:

बहुत बेचैनी में निकली जान:

खबरों में छिपकर रह गयी सांसें:

WriterRaman PandeyExecutive editorBharat Samachar

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