गौरीशंकर वर्मा का जीवन परिचय एक ऐसे जनसेवक की कहानी है जिन्होंने निरंतर संघर्ष, समर्पण और दृढ़ इच्छाशक्ति से राजनीति में अपनी विशेष पहचान बनाई। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के कोंच कस्बे में 1 जुलाई 1964 को जन्मे गौरीशंकर वर्मा का राजनीतिक जीवन कई उतार-चढ़ाव से होकर गुजरा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अंततः जनता के प्यार व पार्टी के भरोसे ने उन्हें विधानसभा पहुंचा ही दिया।
गौरीशंकर वर्मा : प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
गौरीशंकर वर्मा का जन्म जालौन जिले के कोंच कस्बे में एक सामान्य परिवार में हुआ। उनके पिता हरचरणजी वर्मा एक ईमानदार और मेहनती व्यक्ति थे, जिनके संस्कारों ने गौरीशंकर वर्मा के जीवन को दिशा दी। उनकी पत्नी कृष्णा देवी वर्मा एक घरेलू महिला हैं और जीवन के हर पड़ाव पर उन्होंने अपने पति का पूरा सहयोग किया।
गौरीशंकर वर्मा का जीवन परिचय इस बात को दर्शाता है कि सीमित संसाधनों में पले-बढ़े व्यक्ति भी यदि समाज और जनसेवा के प्रति समर्पित हों, तो उन्हें राजनीति में भी महत्वपूर्ण मुकाम मिल सकता है।
गौरीशंकर वर्मा : राजनीतिक सफर की शुरुआत और संघर्ष के वर्ष
गौरीशंकर वर्मा का राजनीतिक सफर वर्ष 2002 में एक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में शुरू हुआ। उन्होंने उस समय कोंच (सु.) विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, जहां उन्हें मात्र 417 वोट मिले और वह दसवें स्थान पर रहे। यह उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत थी, जिसे उस समय बहुत कम लोग गंभीरता से ले रहे थे।
लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय अपने प्रयासों को और तेज कर दिया। 2007 में भाजपा के टिकट पर उन्होंने दोबारा चुनाव लड़ा, और इस बार उन्हें 31820 वोट मिले। हालांकि वे बसपा प्रत्याशी अजय सिंह से 1952 वोटों से पराजित हो गए, लेकिन यह उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि उन्होंने खुद को एक गंभीर राजनीतिक विकल्प के रूप में स्थापित किया।
परिसीमन के बाद की राजनीति और हार का धैर्यपूर्वक सामना
2012 में हुए नए परिसीमन के तहत कोंच सीट समाप्त हो गई और उरई विधानसभा सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने उरई में सुशील नगर को अपना स्थायी निवास बना लिया। इसी दौरान उनके पुराने साथी दयाशंकर वर्मा भी सपा में शामिल होकर उसी सीट से चुनाव लड़े।
गौरीशंकर वर्मा ने 2012 में उरई से भाजपा के टिकट पर फिर चुनाव लड़ा और 45349 वोट प्राप्त किए, लेकिन वह तीसरे स्थान पर रहे। हार के बावजूद उन्होंने राजनीति से दूरी नहीं बनाई, बल्कि खुद को जनता के बीच और अधिक सक्रिय कर दिया।
गौरीशंकर वर्मा : 2017 और 2022 की शानदार जीत
2017 का चुनाव उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। भाजपा ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया और इस बार मतदाताओं ने उन्हें सर-आंखों पर बैठा लिया। गौरीशंकर वर्मा ने लगभग 79,000 वोटों के भारी अंतर से सपा प्रत्याशी को पराजित किया। यह न केवल उनकी राजनीतिक जीत थी, बल्कि उनकी वर्षों की मेहनत का फल भी था।
2022 में भी भाजपा ने उन पर दोबारा विश्वास जताया और उन्होंने फिर से विजय प्राप्त की। इस बार भी उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी को भारी अंतर से हराकर यह सिद्ध किया कि जनता का भरोसा उनके साथ है।
गौरीशंकर वर्मा का जीवन परिचय और राजनीतिक सफर यह दर्शाता है कि एक व्यक्ति जो तीन बार चुनाव हारने के बाद भी न तो टूटा, न झुका – अंततः वह जनता के आशीर्वाद और अपने धैर्य से सफल हुआ। उनका सफर उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो राजनीति को जनसेवा का माध्यम बनाना चाहते हैं।
उनकी राजनीतिक यात्रा, तीन चुनावी हार से लेकर दो बार के विधायक बनने तक, यह सिखाती है कि सच्ची लगन, प्रतिबद्धता और जनता से जुड़ाव ही किसी भी नेता की असली पूंजी होती है।
आज गौरीशंकर वर्मा उरई विधानसभा क्षेत्र के एक सशक्त और सक्रिय विधायक हैं, जो न केवल विकास कार्यों में अग्रसर हैं बल्कि जनता से सीधा संवाद बनाए रखते हैं। उनके नेतृत्व में क्षेत्र की सूरत बदल रही है, और यह बदलाव उनके राजनीतिक सफर की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
जालौन जिले की विधानसभा सीटों का 2022 चुनाव परिणाम [ Jalaun Assembly Election Results 2022 ]
क्रम संख्या | विधानसभा सीट | विजेता पार्टी | विजेता का नाम |
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1 | माधौगढ़ | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) | मूलचंद निरंजन |
2 | उरई | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) | गौरीशंकर वर्मा |
3 | कालपी | समाजवादी पार्टी | विनोद चतुर्वेदी |
उत्तर प्रदेश 2022 विधानसभा में 403 सीटों पर विभिन्न जातियों और धर्मों के विधायकों का प्रतिनिधित्व