अंबेडकरनगर जिले के पांचों विधानसभा क्षेत्रों के वर्तमान विधायकों का राजनीतिक सफर उनके विचारधारा, निष्ठा और दलगत प्रतिबद्धता के विविध रंगों को दर्शाता है। कुछ विधायक अपनी मूल पार्टी के प्रति अडिग रहे हैं, जबकि कुछ ने समय-समय पर राजनीतिक दलों का परिवर्तन किया है। आइए, इन विधायकों के राजनीतिक जीवन पर एक दृष्टि डालते हैं:
त्रिभुवन दत्त (आलापुर) – बसपा से सपा तक का सफर
त्रिभुवन दत्त ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से की थी। वर्ष 2000 में जिला पंचायत अध्यक्ष बनने के बाद, 2002 में अकबरपुर लोकसभा उपचुनाव जीतकर सांसद बने। बाद में 2007 में जहांगीरगंज (अब आलापुर) से विधायक चुने गए। हालांकि, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2020 में बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल हुए और 2022 में आलापुर से सपा के टिकट पर जीत हासिल की।
धर्मराज निषाद (कटेहरी) – बसपा से भाजपा तक का राजनीतिक परिवर्तन
धर्मराज निषाद ने 1996 में बसपा के टिकट पर कटेहरी से चुनाव जीतकर विधायक बने। इसके बाद 2002 और 2007 में भी जीत दर्ज की। 2012 में शाहगंज से और 2017 में गोसाईगंज से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। 2018 में बसपा छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुए। 2022 में अकबरपुर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, परन्तु हार गए। 2023 के उपचुनाव में कटेहरी से भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की।
राकेश पांडेय (जलालपुर) – सपा से बसपा और फिर सपा में वापसी
राकेश पांडेय ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत समाजवादी पार्टी (सपा) से की थी। 2002 में जलालपुर से विधायक चुने गए, लेकिन 2007 में हार गए। 2009 में बसपा में शामिल होकर लोकसभा सांसद बने। 2012 में उनके पुत्र रितेश पांडेय ने जलालपुर से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 2017 में रितेश पांडेय बसपा के टिकट पर विधायक बने। 2019 में सपा-बसपा गठबंधन में रितेश पांडेय सांसद बने। 2022 में राकेश पांडेय सपा में वापसी कर जलालपुर से विधायक चुने गए।
राम अचल राजभर (अकबरपुर) – बसपा से निष्कासन के बाद सपा में नई शुरुआत
राम अचल राजभर बसपा के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और कांशीराम के करीबी सहयोगी रहे हैं। 1986 में विधान परिषद सदस्य बने और 1993 में पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद 1996, 2002, 2007 और 2017 में भी विधायक बने। 2021 में पंचायत चुनावों के बाद पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में बसपा से निष्कासित कर दिए गए। 2022 में सपा के टिकट पर अकबरपुर से विधायक चुने गए।
राम मूर्ति वर्मा (टांडा) – मूल विचारधारा , सपा के प्रति अडिग निष्ठा
राम मूर्ति वर्मा का राजनीतिक सफर समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ शुरू हुआ और वे आज भी उसी पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा में किसी अन्य दल में जाने का कोई उल्लेख नहीं है, जिससे उनकी पार्टी के प्रति अडिग निष्ठा स्पष्ट होती है।
कौन हैं मूल विचारधारा वाले और कौन दलबदलू ?
विधायक का नाम | वर्तमान पार्टी | राजनीतिक दलों का परिवर्तन | निष्कर्ष |
---|---|---|---|
त्रिभुवन दत्त | सपा | बसपा → सपा | दलबदलू |
धर्मराज निषाद | भाजपा | बसपा → भाजपा | दलबदलू |
राकेश पांडेय | सपा | सपा → बसपा → सपा | दलबदलू |
राम अचल राजभर | सपा | बसपा → सपा | दलबदलू |
राम मूर्ति वर्मा | सपा | कोई परिवर्तन नहीं | मूल विचारधारा वाले |
अंबेडकरनगर जिले के पांच में से चार विधायक अपने राजनीतिक करियर में दल परिवर्तन कर चुके हैं, जबकि केवल राम मूर्ति वर्मा ही ऐसे विधायक हैं जिन्होंने अपनी मूल पार्टी के प्रति निष्ठा बनाए रखी है। अंबेडकरनगर की राजनीति में बसपा का ऐतिहासिक प्रभाव अब भाजपा और सपा के बीच बंट चुका है। 2024 के चुनावी रुझान बताते हैं कि यहाँ के नेता अक्सर जातिगत समीकरण और सत्ता के अवसर के आधार पर दल बदलते हैं।